सिरी संपादक जी,
पैरनाम ।

कुशल छेम बड बढिया । अपने सुनाएब की हमर सुनब ? त लिअ पहिने हमरे सुनि लिअ, कीदुन कहलकै जे बाबाजी आउर बाछी(गाई) बेचिक कम्मर किनैए ।

ई बात परिक्रमामे तहिआ खूब सुनल जाए । कहाँदुन चैतके जार हारमे लगैय हई । सेहे त आई एहिना बुझा रहल हई । करेजा केराके भालैर जेकाँ डोलै हई । पुरबाके सह पबिते कोढ दलैक जाइृ हई । एहि मौसमके अनुमाने क क किछु नगरपैलिका सिरक बँटलकै त पैलिकाके नीति आ नियत पर खोँट देखबैत किछु मिडिआ आउर खुब मृदंग पिटलकै ।

फेसबुक आउरमे खूब खिदांस कएलकै । आई जार होइ है त सैंतल उसारल सिरक, कम्बल, हाईनेक, वीनचिटर, टराउजर जानि ने कि की ने पहिरा ल अपस्यिाँत अई, ओढय ला आतुर हई । आब बुझो जे केना नँई मेयर साहेब, उपमेयर साहेब आ काजकारी हाकिम साहेब गरिब जनताके दुःख बुझलकै तब ने सिरक बाँटि रहल हई । तअर नारायण उपर गोबिन्दबाला जमाना गेलै आब । कहाँ केओ पुआर आ लारके ओरिआउन करै हई । एकसँ एक रंगविरंगके लोकके अपने ओढना विछना हई । सिरक नै बँटतै त कम्मर ?

गरमीमे नँई बँटतै त जारमे?आब जार होइ हई गरमीमे त सिरक बँटतै सरदीमे । जे हे सेके ढिढोरा पिटने घुरैय । एकरे कहै हइ धैन्य दरिभंगा त दोहरी अंगा आ की नँई संपादक जी ?

अपनेक खुरलुची समदिया
लबरसटकानन्द

२०८० चैत्र १९, सोमबार १३:४२मा प्रकाशित

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